*1023 भजन में रस।।461।।

भजन में रस ही रस आवै।
जो कोय देखै साधन करके, घर मुक्ति का पावै।।

काम क्रोध मद लोभ मोह को मन से परे हटावै।
मन चित्त बुद्धि वश में करके, ध्यान हरि में लावै।।

मानुष तन तनै मुश्किल पावै, मतना व्यर्थ गंवावै । 
इब के बेल दुखों की कटती, फेर वक्त ना पावै।।

भक्ति कैसी चीज नहीं रे, जो कोई ध्यान लगावै।
जन्म मरण गर्भ दुखदाई, हरदम काल सतावै।।

सूरत शब्द का साधन करले, शब्द ही शब्द समावै।
निहालीबाई शरण सदगुरु की, राधास्वामी गावै।।

Comments

Popular posts from this blog

*165. तेरा कुंज गली में भगवान।। 65

*432 हे री ठगनी कैसा खेल रचाया।।185।।

*106. गुरु बिन कौन सहाई नरक में गुरु बिन कौन सहाई 35