*929 मन तू माने ना।।426।।
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मन तूँ मानै ना-२, तनै मेरी मति मारी।सुमरन तू करता ना-२, तूँ लेता फिरैं उडारी।।
सत्संग में तूँ कदे न जावै, नए बहाने रोज बनावै।
सन्तों की सुनता ना, तनै लागै बात वो खारी।।
जन्म जन्म के पापों का बोझ, घटता नहीं यो बढ़ जावै रोज।
कर्म कैसे कटेंगे, या तनै नहीं विचारी।।
किसे केभी नाकाबू आवै। सन्तों के बिन कौन पीछा छुड़ावै।
सन्त कब मेहर करे, तेरी काटें अकड़ या सारी।
मेजर साहब की शरण में जाले, कृष्ण खोया भाग जगाले।
गुरु का बनजा तूँ, या छोड़ दे दुनियादारी।।
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