*856 त्याग के ने चलना होगा।।402।।

त्याग के ने चलना होगा, सद्गुरु के दरबार में।
           बिन सद्गुरु तनै राह न पावै, आना पड़े सन्सार में।।
भाई बन्धु कुटुंब कबीला, सब तैं तनै जोड़ लई।
छोड़ सुकर्म करता कुकर्म, मालिक से बुद्धि मोड़ लई।
झूठ कपट छल चातर करके, काफ़ी माया जोड़ लई।
बड़े बडां की इस दुनिया में, चलते तागड़ी तोड़ लई।
     मिल के धोखा जो कर ज्यां, 
                      फेर के रखा हुशियार में।।
समझ के चलना इस दुनिया में, पूरा देश दीवाना है।
चार दिनों का रंग तमाशा, लिखा हुआ परवाना है।
जोबन और जवानी दोनों, मिट्टी में मिल जाना है।
पाप पुण्य के लिए बना हुआ, यमपुर का एक थाना है।
         यम के दूत लगावैं फांसी,
                     रहै गफलत परिवार में।।
सद्गुरु जी की वाणी ने तूँ, सुन सुन धर बंगले में।
सद्गुरु पूंजी नाम बरतले, क्या रखा कंगले में।
सद्गुरु जी के चरण पूज भइ होजां मेल सँगले में।
सहजै मुक्ति मिल जागी तनै, पाँच तत्व के जंगले में।
       अनमोल है माया सद्गुरु जी की, 
                          कर भक्ति ले प्यार में।।
कान्हादास परम् गुरु रसिया, हरदम ज्ञान करो जन का।
बन सेवक गुरु मामचंद का, तज माया योवन का।
पालदास भी पड़ा चरण में, मेटो शंसय इस मन का।
निर्भय राह दिया सद्गुरु ने, और फिक्र रहा ना कफ़न का।
       इस वाणी ने जो ना समझे,
                            वो गोते खा मझधार में।।


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