*925 मन करले साहेब से प्रीत।।425।।

मन करले साहेब से प्रीत।
शरण आए सो सब ही उतरे, ऐसी उनकी रीत।।
सुंदर देह देख मत फूलो,
                  जैसे तृण पर सीत।।
काची देह गिरैं आखिर को,
                   ज्यूँ बालू की भींत।।
ऐसो जन्म फेर नहीं आवै, 
                    जाए उम्र सब बीत।।
दास गरीब चढ़े गढ़ ऊपर,  
                      देव नगाड़ा जीत।।

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