*853 कुछ सोच समझ प्राणी, एक दिन दुनिया से उड़ जाना।।400

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                  चल उड़ जा रे पँछी
कुछ सोच समझ प्राणी, एक दिन दुनिया से उड़ जाना।
    कुछ साथ नहीं लाया, के कुछ साथ नहीं ले जाना।।
जिसे सोचता है तूँ अपनी, वो है एक सराय। 
चार दिनों का मेला है ये, कोई आए कोई जाए।
मोहमाया के जाल में फंसकर, पृभ को क्यूँ बिसराय।
        ये तेरी जागीर नहीं है, ये तो मुसाफिर खाना।।
विषयों की ये मस्त हवा, मझधार डुबोने वाली।
जीवन को बर्बाद करेगी, चाल तेरी मतवाली।
पशुओं का सा जीवन है, जो हो उपकार से खाली।
      मानव का उद्देश्य नहीं है, केवल पीना खाना।।
प्रातः सायं करले प्रार्थना, पृभ के गुण गा ले।
तोड़ के सारे झूठे बन्धन, जीवन सरल बना ले।
दीन दुखी की कर तूँ सेवा, दुखिया गले लगाले।
     नन्दलाल कह मानव चौला, जो है सफल बनाना।।


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