*885 मेरा तेरा मनवा भाई।।413।।
413
मेरा तेरा मनवा भाई, एक कैसे होइ रे।।तूँ कहता कागज की लेखी, मैं कहता आंखों की देखी।
मैं कहता तूँ जागत रहिये तूँ जाता पड़ सोई रे।।
मैं कहता सुलझावन आली, तूँ जाता उलझाई रे।
मैं कहता निर्मोही रहिये, तूँ जाता है मोही रे।।
जुगन-२ समझावत हारा, कहा न मानै कोई रे।
तूँ तो रँगी फिरै विहंगी, सब धन डारा खोई रे।।
सद्गुरु धारा बहे निर्मली, वा में काया धोई रे।
कह कबीर सुनो भई साधो, तब ही वैसा होइ रे।।
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