*875 मन रे क्यूँ भुला।। 410।।
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मन रे क्यों भुला मेरे भाई।जन्म जन्म के कर्म भरम तेरे, इसी जन्म मिट जाई।।
सपने के में राजा बन गया, हस्कीम हुक्म दुहाई।
भोर भयो जब लाव न लश्कर आंख खुली सुद्ध आई।।
पक्षी आन वृक्ष पर बैठे, रलमिल चोलर लाई।
हुआ सवेरा जब अपने अपने, जहाँ तहाँ उड़ जाई।।
मातपिता तेरा कुटुंब कबीला, नाती सगा असनाई।
ये तो सब मतलब के गरजु, झुठी मान बड़ाई।।
सागर एक लहर बहु ऊपजै, गिनु तो गिणी ना जाई।
कह कबीर सुनो भइ साधो, उलटी ए लहर समाई।।
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