*1011 सब से ऊंची प्रेम सगाई।455।।

                                   
                         455
सबसे ऊंची प्रेम सगाई।
दुर्योधन की मेवा त्यागी, साग विदुर घर खाई।।
झूठे फल शबरी के खाए, प्रेम वश रघुराई।।
प्रेम के वश नृप सेवा कीन्ही, आप बने हरि नाईं।।
प्रेम वश अर्जुन रथ हांक्यो, भूल गए ठकुराइ।। 
सूर पूर इस लायक नाहीं, कहां लौं करूँ बड़ाई।।

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