*845 मुझे मिल गया मन का मीत।।396।।
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मुझे मिल गया मन का मीत, ये दुनिया क्या जाने।।
मेरी लगी गुरू सँग प्रीत, ये दुनिया क्या जाने।।
पेशी जब गुरुवर की लगाई, पासा पलट गया मेरे भाई।
मेरी हार हो गई जीत।।
प्रीतम ने खुद प्रेम जताया, करके इशारा पास बुलाया।
है प्रेम की उल्टी रीत।।
ताल अलग है राग अलग है, ये वैराग्य अनुराग अलग है।
मन गाए किसके गीत।।
सत्संगी होकर जो सीखा, काम क्रोध को कर जो सीखा।
ऐसा है ये संगीत।।
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