*943 तन खोज्या मन पाया रे।।432
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तन खोज्या मन पाया रे साधो।
मन ही श्रोता मन ही वक्ता, मन ही निरंजन राया।।
मन गुण तीन पाँच तत्व रे, मन का ये सकल पसारा।
जैसे चन्दा उदक में दरसै, है माहीं पर न्यारा।।
जागृत सपन सुसुप्ति तुर्या, ये सब मन की झांई।
दस अवतार अनसधर धोला, मन है द्वितीय नाहीं।।
शशी कर मण्डल रहें एक रस,घट बढ़ कर न लखाया।
जैसे कंचन के आभूषण, बहु विध नाम धराया।।
आदि था सो अब भी होगा, सद्गुरु भेद लखाया।
कह कबीर कंचन आभूषण, एक भया तब भाया।।
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