*1009 सजन ये प्रेम की घाटी। 454।।
454
सजन रे प्रेम की घाटी, निभाओ तो गुजारा है।
कठिन मार्ग विकट चलना, नहीं तक़वा हमारा है।।
अर्स के चौक के भीतर, बजे ये सुर हमारा है।
जहां मन चोर मस्ताना, अनहद कह पुकारा है।।
दीवाने लोग मर्दाने, जिन्हों को खुश बहारा है।
गलिसा गैप कमालों की, मिले महबूब प्यारा है।।
नजर गुलजार दिलवर से, दर्श पा के नजारा है।
रहे क्यों होंश तन मन की, अगर गह गह निहारा है।।
गुमानी दास नूरी में, हुआ रहना हमारा है।
मेहर करके खोल दो पर्दा, नित्यानन्द दास तुम्हारा है।।
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