*1001 दे ध्यान जरा, सोच रहा।।451

                                   
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दे ध्यान जरा, सोच रहा क्या मन मे।
जग के सब जंजाल त्याग कर, लगजा हरि भजन में।।
एक दिन कंचन जैसी काया, बिगड़ जाएगा रंग तेरा।
तात मात सुत भ्रात सभी, ये ना देंगे साथ तेरा।
            मर करके केवल दो पल में
                             जाना उसी भवन में।।
घर से चलते ही त्रिया का, नाता तुमसे टूट गया। 
और साथ जाने वालों का, मरघट पर सँग छूट गया।
          थोड़े दिन तो रहा जमीं पर, 
                           जाना तुझे गगन में।।
ये घर वाले बांध के तुझको, मरघट तक ले जाएंगे।
चिता बीच रखने की तुझको, हरा न देर लगाएंगे।
          जा बैठेंगे दूर फेर ये, 
                          लगा आग इस तन में।।
भाई बन्धु कुटुंब कबीला, तुझसे नाता तोड़ेंगे।
धन दौलत और माल खजाना, यहीं पड़ा सब छोड़ेंगे।
        एक दिन हंस उड़ेगा यहाँ से,
                        मुट्टी खुला वतन में।।
सूट बूट पतलून उतारी, काया करदी नंगी है
थोड़ा कफ़न डाल कर तुझ पर, बना न कोई संगी है।
        हरि का नाम सुमरले बन्दे
                     लगा आग इस धन में।।


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