*936 सफा न देखा दिल का।। 429।।
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सफा न देखा दिल का, साधो भाई सफा।।
काजी देखा मौला देखा, पंडित देखा छल का।
औरों को बैकुंठ बतावै, आप नरक में सड़ता।।
पढ़े लिखें न गुरू मन्त्र को, करै गुमान तुं मत का।
बैठे नाहीं साध की संगत, करे गुमान वर्ण का।।
मोह की फांसी पड़ी गले में, भाव करे कामिन का।
काम क्रोध दिन रात सतावै, लानत ऐसे तन का।।
सत्त ज्ञान की मूठ पकड़ले, छोड़ कपट सब दिल का।
कह कबीर सुनो भई साधो, पहर फ़कीरी खिलका।।
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