*1000 अपने प्यारे सद्गुरु जी का ध्यान घड़ी घड़ी।।।450।।

                            
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अपने प्यारे सद्गुरु जी का, ध्यान लगाओ घड़ी घड़ी।।
भंवरजाल में फंसी आत्मा, कालबली की कैद पड़ी।।

दई देवता मढ़ी मसानी,सभी काल का है चारा।
ब्रह्मा विश्व शिव और गोरख, मायाजाल में फंस हारा।।
ऋषि मुनि और पीर पैगम्बर, करी तपस्या अहंकारा।
रामचंद्र ओर कृष्ण जी भी, उतर सके ना भँव पारा।।
        तीन युगों में बलि हुए, 
                   इन सब की नैया बीच अड़ी।।

कोय ग्रन्थ में कोय पत्रां में, कोय जल में गोते खा रहा।
कोय धर्म में कोय कर्म में, मान बड़ाई में आ रहा।
राख रमा के भगवां पहरे, जटा बढालें सैं भारा।
धोती नेति क्रिया करते, अंदर साफ करें सारा। 
          मन की मैल उतारी कोन्या,
                           जिसमे अमोलक रत्न जड़ी।।

लख चौरासी जून भुगत के, मानव चौला पाता है।
बिन सद्गुरु के भजन बिना फिर, अंत समय पछताता है।
पाँचों अग्नि देते अंदर, उनको नहीं बुझाता है।
मन हठ करके देह को जलावै, तन का माँस सुखाता है।
        पूरा सद्गुरु मिले बिना तेरी,
                           भर्म की तोड़ै कौन लड़ी।।

सोहनी सूरत मोहनी मूरत, हृदय बीच बसाना तूँ।
बड़े भाग मानस तन पाया, शरण गुरू की जाना तूँ।
सतयुग त्रेता द्वापर बीता, कलि कीर्तन गाना तूँ।
छः सो मस्ताना सद्गुरु मिलगे, नित उठ दर्शन पाना तूँ।
              सद्गुरु कहते ध्यान गुरु का, 
                              काल की तोड़ै बेल लड़ी।।

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