*910 रे मन मुसाफिर।।420।।

                               
                                  420
रे मन मुसाफिर निकलना पड़ेगा, 
                 काया कुटी खाली करना पड़ेगा।।
चमड़े के कमरे को तूँ क्या सम्भाले,
     जिस दिन तुझे घर का मालिक निकाले।
           इसका किराया भी भरना पड़ेगा।।
आएगा नोटिस जमानत न होगी,
     पल्लू में अगर कुछ अमानत न होगी। 
            फिर हो के कैद तुझे चलना पड़ेगा।।
मेरी न मानो यमराज तो मनाएंगे,
     तेरा कर्म दंड मार मार भुगताएँगे।
            घोर नर्क बीच  दुःख सहना पड़ेगा।।
कह गीतानन्द फिरेगा तूँ रोता,
     लख चौरासी में खाएगा गोता।
            फिर फिर जन्म ले के मरना पड़ेगा।।


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