*879. बाणा बदलो सो सो बार।।411।।

                                 
                                   411
बाणा बदलो सो सो बार, बदलो बाण तो बेड़ा पार।।
   सोना चांदी में चोंच मंढाई, किया हंस की लार।
   कागा बाण कुबाण तजे ना, इत सत्संग लाचार।।
युग युग सींचो अरण्ड दूध तैं, लागैं नहीं अनार।
चूर चूर चंदन कर डारो, तजै नहीं मेहंकार।।
   सज्जन के मुंह अमिरस बरसै, जब बोलै जब प्यार।
  दुर्जन का मुंह बंद कर राखो, भट्ठी भरे हैं अंगार।।
हमने तो अपनी सी कह दी, नहीं और ने सार। 
शम्भु दास शरण सद्गुरु की, सिमरो सर्जनहार।।


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