*884 मन ऐसा ब्याह करवा रे।।413।।
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मन ऐसा ब्याह करवा रे, तेरी सहज मुक्ति हो जा रे।
पांचों बान समझ कै न्हा ले,
दया का बटना लगा रे।।
ज्ञान का कंगन, प्रेम की मेहंदी।
सत्त का मोड़ बंधा रे।।
पाँच पच्चीसों तेरे, चढेंगे बराती
निर्भय ढोल बजा रे।।
साँसमसास मन फेरे भी ले ले।
त्रिकुटी चोरी मंढा रे।।
सुरत सुहागन मिलेगी पिया से।
तूँ पर घर मत ना जा रे।।
कह कबीर सुनो भई साधो।
आवागमन निसा रे।।
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