*876 मेरा मन मूर्खा भाई।।410।।
410
मेरा मन मूर्खा भाई, गुरू बिन जागा कौन सी घाटी।।
अगम से पच्छम चल आया, बंक नाल की घाटी।
इस काया में दस दरवाजे, पंक लगै ना टाटी।।
घाटी दूर पहुंचना मुश्किल, आगै विषम कराटी।
रपट पड़ै तो ठौर न पावै, जग में होजा हाँसी।।
हिन्दू मुश्लिम दो दीन बता दिये, बीच भर्म की टाटी।
सांस यमोँ ने छीन लई तेरी, पड़ी रह गई माटी।।
सौदा करै तो यहाँहीँ करले, आगै भिंचवाँ घाटी।
बैल बने कंगाल का, तेरे ऊपर बाजै लाठी।।
कह कबीर सुनो भई साधो, यह सुनने की बाती।
यम राजा की फौज खड़ी है, त्रिवेणी के घाटी।।
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