*899. रोवेगा लोभी तक।।417।।

                                  
                                     417
रोवेगा लोभी, थक जांगे पौरुष तेरे।।
  आज तूँ जिस को कहता मेरे, होंगे वे दुश्मन तेरे।
  तेरे खोदे तुझे मिलेंगे, तेरे हाथ के झेरे।। 
उस कुनबे ने के सिर पे धरेगा, जिस को कहता मेरे।
कुनबे खातिर पिटता डोलै, बोले झूठ भतेरे।।
   बुढा हो के सिकल बिगड़ जा, काल लगावैं फेरे।
   गुरु का शब्द सत्य नहीं माना, समझे ऊत लुटेरे।।
महल हवेली सभी छूट जा, हो मरघट में डेरे।
कह कबीर सुनो भई साधो, जगह चौरासी में गेरे।।




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