*881 मनवा तूँ किस का सरदार।।412।।

                                 
                             412
मनवा तूँ किसका सरदार, रे तेरी रैय्यत है खोटी।।
  तेरे नगर में पाँच जुलाहे, जो नित करते व्यापार।
  रात दिनां मुड़ते नहीं हारे, बिना काम का तार। रे।।
तेरे नगर में पाँच कमीनी, करें नई नई कार। 
पाँचों किसी का कहा न मानै, बहोत घनी बदकार। रे।।
   जब पाँचों को पता नहीं था, या नगरी थीं गुलजार।
   जब पाँचों को खबर पड़ी, तेरी नगरी दई उजाड़। रे।।
इस नगरी को फेर बसाओ, कर पाँचों सङ्ग रार।
कह रविदास सुनो भई साधो, लूटो अजब बहार। रे।।

Comments

Popular posts from this blog

*165. तेरा कुंज गली में भगवान।। 65

*432 हे री ठगनी कैसा खेल रचाया।।185।।

*106. गुरु बिन कौन सहाई नरक में गुरु बिन कौन सहाई 35