*917 मन रे अब की बार।।422।।

                                                                
                                422 
मनरेअबकीबार सम्भालो।
जन्म अनेक दगा में खोयो, गुरु बिन बाजी हारो।।
     बालापन ज्ञान नहीं तन में, जब जन्मे तब बारो।
    तरुणाई सुख वास में खोयो, बाजो कूच नगारो।।
सुत दारा मतलब के साथी, जिनको कहत हमारो।
तीन लोक औऱ चोदह भुवन में, सभी काल को चारो।। 
   पूर रहो जगदीश गुरुवर, वा से रहो न्यारो।।
   कह कबीर सुनो भई साधो, सब घट देखन हारो।।


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