*896 वश में कर ले मन ।। 415।।
415
वश में करले मन शैतान को, खुद होजा मस्त दिवाना।।
काजी कहे खुदा हैं कक्के, खाते फिरें भर्म के धक्के।
हैं नहीं पूर्ण मन के पक्के, छोड़ दिया ईमान को।
नहीं पावै ठोर ठिकाना।।
तीस दिनों तक रोजा रहते, बिना विचार क्यों भूखा रहते।
जीव हिंसा से क्यों ना डरते, कहां पे लिखा कुरान में।
जो खाते मांस वीराना।
कलमा पढें व पढें नवाजी, सबकी मति हर लेते काजी।
इन बातों से मिले न बाजी, नहीं पावै नूर निशान को।
होगा दोज़ख़ में जाना।।
सदा मांस तुम खात मीन का, पंथ चलाते सदा सीन का।
गंगादास पद कह दीन का, भूल गए रहमान को।
फिर मिले न पद निर्वाणा।।
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