*918 समझ समझ गुण गाओ रे।।422।
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समझ-२ गुण गाओ रे प्राणी, भूला मन समझाओ रे।
बालू के बीच बिखर गई बूरा, सारी हाथ न आवै जी।
ऐसा हो परदेसी म्हारा मनवा, चींटी बन चुग जावै जी।।
जैसे कामनी चली कुएं को, घड़ा नीर भर लावै जी।
धीरज चाल चले मतवाली, सुरत घड़े में लावै जी।।
जैसे सती चढ़े चिता पे, सत्त के वचन सुनावै जी।
उसकी सूरत रहे जलने में, डिगे ठौर ना पावै जी।।
जैसे ध्यानी बैठा ध्यान में, ध्यान गुरु में लावै जी।
शरण मछँदर जति गोरख बोले, सत्त छोड़ पत जावै जी।।
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