*1026 भगती के घर दूर बावले।।462।।

                            

                            462

          भक्ति के घर दूर बावले, जीते जी मर जाना।।
मंजिल दूर कठिन है राही, मुश्किल भेद लगाना।
उस घर का तूँ भेद बतावै तज दे गर्भ गुमाना।।
        जोग जुगत तनै कुछ ना जानी, ले लिया भगवां बाणा।
        बाणा पहन खोज न किन्ही, कैसे निर्भय घर जाना।।
जिस घर तैं तुम प्यार करो रे, परली पार ठिकाना।
आर पार का जो भेद लगावै, सोई सन्त स्याना।।
       मोह माया नर बन्धन तोड़ा,छोड़ा देश बिराना।
       कह रविदास अगम के वासी, अमरलोक घर जाना।। 

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