*887 मेरा मन बानिया जी।।413।।
413
मेरा मन बानिया जी, अपनी बाण कदे ना छोडै।।
हेरा फेरी के दो पलड़े, ऊपर कानी डांडी।
मन में छल कपट हृदय में,
हाट चौरासी माण्डी।।
पूरे बाट परे सरकावै, कमती बाट टटोले।
पासंग माही डांडी मारै,
मीठा मीठा बोलै घर में इसके चतुर बनियानी, छिन-२ में चित्त चोरै।
कुनबा इसका बड़ा हरामी,
अमृत में रस घोलै।।
जल में वोही थल में वोही, घट घट में हरि बोलै।
कह कबीर सुनो भई साधो,
बिन मतलब नहीं बोलै।।
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