*1465 पा सतगुरु से ज्ञान भेद सब हो जागा।
पा सतगुरु से ज्ञान भेद ये भी हो जागा ।।
ये किस ने गोद खिलाए, भेद ये भी हो जागा।
भर्म मिटेगा तेरा, ज्ञान जब हो जागा।।
अंड पिंड ब्रह्मांड है भारा, इसका कौन है रचने हारा।
तूं सुनिए ब्रह्म पसारा, भेद ये भी हो जागा।।
जागरण स्वप्न सुसुप्ति तूर्या, समझा दे ये किसकी पुरिया।
ये तो परकश चांद बिन सूर्या, भेद ये भी हो जागा।।
नीचे कुई ऊपर कुआ, इसके बीच में हो रहा जुआ।
खेल हंस और सुआ, भेद ये भी हो जागा।।
सुन तीन मात्रा का घेरा, अस्ति भाती प्रिय में डेरा।
ये तो तीन आकाश चोफेरा, भेद ये भी हो जागा।।
ब्रह्मदास गुरु समझावे, चारों पद जो गुरां से पावे।
गुरु शेरसिंह दास कथ गावे, भेद ये भी हो जागा।।
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