*1543 जल भरा किले में ताल, मैल के वस्त्र डारो धोए।।

जल भरा किले में ताल महल के वस्त्र डारो धोय।।
सुन्न शिखर एक ताल कटोरा, निर्मल नीर भरा अनमोला।
ऊंची किले की बाड़ देई है डाल ताल खुदवाया2।
कोय संत महात्मा बैठ ताल में नहाया।
वहां है निर्मल नीर मिटे सब पीर अमर हो काया।2।
वहां टोपा रहे ना लेश मिटे दुख दाया।
वहां सुख आनंद अति भारी, शोभा निरखी छवि सारी।
वहां चंदन की पिचकारी, लगे जड़ दिए खड़ग अटारी।
वहां बिन सूरज उजियास करो तुम ख्यास।
                      बैठ के पास गुराँ के, तब सत्संग होय।।
अजब नगर एक शहर अनोखा, करो न सैल मिलेनही मौका।
कर अजब नगर की सैल, पहुंच ले गैल सूरत कर वहां की।
जहां शब्द रहा झंकार,रहा ना बाकी।
काम क्रोध ने मार ज्ञान तलवार, म्यान कर राखी।
तेरा जहां से आया हंस, लखों उस घाटी।
जहां बिखरे हीरे जवाहरात, वहां बहे शब्द चोधारा।।
तूं किस विद उतरे पारा, सतगुरु का लेओ सहारा।
तूं सुन मूर्ख अज्ञान शब्द पहचान, बात मेरी मान।
                                    गांठ तैं हीरा जागा खो।।
पांच चोर या में डाके मारें, उठें बाल लदे न्यारे न्यारे।
तेरा घर का लुटें माल करे बेहाल तुरत भग जावे।
ये भग जा कोस हजार, हाथ नही आवैं।
तूं ले सतगुरु की सैन बदल जा बैन, हाथ जब आवे।
ये पांच पच्चीसौ चोर, जबर कहलावे।
कोय इन पांचों ने मारे, गल फांसी इनके डारे।
सुन्न चढ़ के शब्द पुकारे, फेर तोड़ किले ने डारे।
                       अगाड़ी और बतावे दोय।।
सोला लकीर किले की खाई, मनी राम वहां रहता सिपाही।
फिर पूर्व दरवाजे पांच पचाको नाय २
दो दरवाजे बंद लोक को जाए।
उत्तर दक्षिण देश किवाडिया ना हैं २
सखी निकली सैल करन को देखती राहें।
क्वारी के पिया घणेरे, ना लिए सखी वहां फेरे।
फिर सतगुरु मिल गए मेरे, सब ले किवाड़ में घेरे।
कह कबीर विचार सुनो धर्मदास फेर तेरा आवागमन ना हो।।



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