*1543 चढ़ जा रे हंसा अमर लोक में।।

चढ़ जा रे हंसा अमरलोकमें, असंख्य कोट मौजा भारी।
तीन लोक तक काल का चक्कर है आगे भोम डगर न्यारी।।

सत्य की बात समझ के कह दूं, सांच कहुं तो लागे खारी।
भवसागर में सब जग उलझा, बिरला बात सु ने म्हारी।।

सतगुरु बाण तान के मारा, और भजन की कटारी।
चमड़ा खोज जुगत कर जीती, ज्ञान घोड़े ललकारी।।

नाभि कमल रस धुना लागया, मिल जा बूंद होती ना न्यारी।
हल्का हो के अमीरस पीवे, दुख दुविधा मिट जा सारी।।

रामानंद गुरु मिला पूरा, जन्म जन्म का अवतारी। 
कहे कबीर सुनो भाई साधो, सत  भक्ति से देह तारी।।

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