*1546. औऱ बात थारै।।679।।

                              
औऱ बात थारै काम ना आवै, रमता सेती लाग रे।
क्या सोवै गफलत के मा, जाग जाग उठ जाग रे।।
    तन सराय में जीव मुसाफिर, करता रहा दिमाग रे।
    रैन बसेरा करले न डेरा, ऊठ सवेरा त्याग रे।
उम्दा चौला रत्न अमोला, लगे दाग पे दाग रे।
दो दिन की गुजरान जगत में, क्यों जले वीरानी आग रे।
   कुब्द्ध कांचली चढ़ी है चित्त पे, हुआ मनुष्य से नाग रे।
   सूझत नाही सजन सुख सागर, बिना प्रेम वैराग्य रे।।
हरि सुमरै सो हंस कहावैं, कामी क्रोधी काग रे।
भरमत भंवरा विष के वन में, चल बेगमपुर बाग रे।।
   शब्द सैन सद्गुरु की पिछाणी, पाया अटल सुहाग रे।
   नित्यानन्द महबूब गुमानी, प्रगटे पूर्ण भाग रे।। 



Comments

Popular posts from this blog

आत्मज्ञान।Enlightenment

*78. सतगुरु जी महाराज मो पर साईं रंग डाला।।27

कभी टेलीफोन बूथ पर काम करता था , आज है। Comedy King है। || KAPIL SHARMA BIO-GRAPHY ||TKSS