*1471. पिया पाया हेली तेरा हे।।646।।

                             646

पिया पाया हेली तेरा हे जिसका, करलो दीदारा हे।।
  बिन धरणी आकाश बीज बिन, वृक्ष लगाया जी।
  जात पात फल है नहीं, ना काया छाया जी।।
नहीं राम का नाम खुदा का खोज न पाया जी।
नहीं अनघड़िया देव, किसे ने ना गीतब गाया जी।
             बेनामी बेरूप है वो, कहन सुनन से न्यारा।।
नहीं मन्दिर नहीं देव वहां, नहीं पूजा पाठी जी।
है नार पुरुष की है नहीं, कोय सूरा साथी जी।
         अधर पधर की मौज है,कोय पहुंचे सन्त पियारा।।
मनै देखे तीनों लोक, सभी मे मैं फिर आया जी।
इधर उधर की न बात, क्यूँ उसके दोष लगाया जी।
        बिन सद्गुरु पावै नहीं रे, वो है देश अपारा।।
कह कबीर पुकार, गुरू रामानन्द पाया जी।
अंड पिंड ने छोड़, पुरूष में जाए समाया जी।
        ये तो उनका नाम है रे, मूल जो सन्त बताया।। 

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