*1461 ज्ञान घटा झुक आया साधो भाई।।
भरम कर्म व्यापे नहीं कब हूं, गुरु से गुरु गम पाया।
साधु भाई ज्ञान घटा झुक आया।।
बादल बीज बिना नित बरसे, स्वाति बूंद झड़ लाया।
धरण गगन बिन अमृत भरिया, सो रस गूंगे पाया।।
पिवत प्राण परम सुख पाया, जरा मरण नहीं आया।
अमर देश में आसन किया, अटल वृक्ष की छाया।।
अटल अभंगी सब का संगी, नहीं सरबंगकु जाया।
अवगत अलख खलक माही दर्शे, गुरमुख ज्ञानी पाया।।
झिलमिल दीप जुगत में दरसे, सतगुरु मोहे समझाया।
कह बनानाथ ब्रह्म की बातों, भेद बिना भय खाया।।
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