*1559 हिलमिल मंगल गाओ म्हारी सजनी।।

हिलमिल मंगल गाओ म्हारी सजनी।
                   हुई प्रभात बीत गई रजनी।।
नाचे गाए क्या हो बहना, सतगुरु शब्द परख लेना।
अमृत पीवे अमर फल लागे, विष फल ने कोय हरिजन चाखे 
सूरत निरत की वो फुलवाड़ी, मन को मार करो रखवारी।।
कह कबीर गूंगे की सैना, परखेगा कोय संत सयाना।।


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