*1495 हेली म्हारी बाहर भटके काई थारे सब सुख है घट माही।।

हेली म्हारी बाहर भटके काई थारे सब सुख है घट माही।
हेली म्हारी घट में ज्ञान विचारों, थारो कुण है बोलन हारो।।

हेली म्हारी जाकी करो बोलखाई, थारो जन्ममरण मिट जाई।
हेली म्हारी इंगला पिंगला नारी, वहां सुखमणि सेज संवारी।।

हेली म्हारी आन मिलो पीयू प्यारी, वहां नहीं पुरुष नहीं नारी।
हेली म्हारी बाजे बीन सितारा, वहां मुरली का झंकारा।

हेली म्हारी  सोहम झिलके तारा, वहां बिन जोती उजियारा।।
हेली गगन में घूरे निशाना, वाका मेहरम विरला जाना।।

कोई जाने जानन हारा, जिन्हें आत्म तत्व विचारा।
हेली मिला कबीर गुरु पूरा, जिन्हें शब्द दिया भरपुरा।।


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