*1495 हंसा मोती चुग ले रे, रे यहां सदा नही रहना सै।।

हंसा मोती चुग ले रे, रे यहां सदा नही रहना।।
ताल में तेरे नीर घना सै, इसका तेरै घमंड बना सै।
                  एक दिन सूख जा पगले रे।
काम क्रोध मद लोभ तजे न, उसे मलिक का नाम भजे ने।
                 तृष्णा दूती ठग ले रे।।
यो संशय का संसार हुवे सै, हाथ में माखन क्यों टोहवे सै।
                   क्यूं सोवे सै, जग ले रे।।
धर्मचंद के लिखे धरे सैं, जैसे भी तने कर्म करे सैं।
                    काढ़े वो पिछले अगले रे।।





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