*1441 यह सब वाचक ज्ञान कहावे।।

     बिन समझे क्या गावे, ये सब वाचक ज्ञान कहावे।।

हाथ  न कोड़ी गांठ न पैसा, साहूकार कहावे।
बात-बात में मोहर अशरफी, गिन गिन के पकड़ावे।।

अंदर काला ऊपर धोला, नाना भेष बनावे।
पैर तले की आग बुझे ना, भाड़ बुझावन जावे।।

सपने में तूं चाटे अमृत, रुचि रचि भोग लगावे।
आंख खुली भूखा ही रहता, फिर भोजन को चाहवे।।

कह रविदास सुनो भाई साधो, मोहे अचंभा आवे।
जैसे कोई पड़ा हो जमीं पे, हाथ चांद के लावे।।

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