**1543 चल हंसा सतलोक हमारे, छोड़ो ये संसारा हो

चल हंसा सतलोक हमारे छोड़ो ये संसारा हो।।

इस संसार का काल है राजा, यो मायाजाल पसार हो।
चोदह लोग इसके मुंह में बसे हैं, वह सबका करें अहारा हो।।

जार बार कोयला कर डारे फिर फिर दे अवतारा हो।
ब्रह्माविष्णु शिव तन धर आए, फिरओर का कौनविचारा हो।।

सुर नर मुनिजन छल बल मारे, चौरासी में डारा हो।
मद आकाश आए जहां बैठा, वो जोत स्वरुपी उजियारा हो।।

वा के पार एक और नगर है, जहां बरसे अमृत धारा हो।
श्वेत स्वरूप फूल जहां फूले, हंसा करत बिहारा हो।।

कोटि सूर्य चंद्र छिप जावे, जा के एक रूम चमकारा हो।
कह कबीर सुनो धर्मदासा, वो देखो पुरुष दरबारा हो।।

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