*1505 एक दिन उड़े ताल के हंस।।

एक दिन उड़ें ताल के हंस,
                   फेर नही आवेंगे।।
लिपें सवा हाथ में धरती, काटें बांस बनावें अर्थी।
                  संग में चले ना धरती, वे चार उठावेंगे।।
या काया तेरी खाक में मिलेगी, जब ना तेरी पेश चलेगी।
                  इसमें हरी हरी घास उगेगी ढोर चर जावेंगे।।
बिस्तर बांध कमर हो तगड़ा, सीधा पड़ा मुक्ति का दगड़ा।।
                  जिसमे नहीं है कोई झगड़ा, वे मुक्ति पावेंगे।।
जो भी करी आपने करनी, वो तो अवश्य पड़ेगी भरनी।
                 ऐसी वेदव्यास ने बरनी कवि कथ गावेंगे।।

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