*1455 सतगुरु पूर्ण ज्ञान तुम्हारा।।

सतगुरु पूर्ण ज्ञान तुम्हारा।
जो कोई आगे शरण आपकी तज के मान गुमाना।।

मैं अनाथ अति निर्बल असहाय, फटका बहुत प्रकारा।
जब मैं सुनी आपकी महिमा छोड़ा सब घर बारा।।

आप दयाल दिनों के दाता, कर कृपा अपनाया।
सहजे ज्ञान दिया झट अपना, भागा भरम विकारा।।

सच्ची लगन लगी जब घट में पाया भेद तुम्हारा।
निश्चय करके नहीं डोले, अर्श फर्श निर्भारा।।

जय शिवानंद गुरु की महिमा जाने जानन हारा।
वह निर्भय गुरु गम से पाया, अगम अखंड अपारा।।

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