*1555. संत सेन को समझ भूल में क्यों भूलियां।

संत सेन को समझ भूलमें क्यों भूलियां।
        यह जग मिथ्या जान इसीमें क्यों डोलिया।।
मनुष्य जन्म अनमोल काम कर लीजिए।
              सत्संग अमृत धार शरबत हो पीजिए।।
इब के चुके चाल ठोर नहीं पाएगा।
               यह जन्म बड़ा अनमोल फिरनहीं आएगा।।
तीन गए तेरे बीत चौथा आएगा। 
              चेत ले न मूर्ख जन्म अकारथ जाएगा।।
सतगुरु ताराचंद संत, वक्त रुक्का दे रहा।
               बैठो शब्द की नाव टिकट को दे रहा।।

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