*1552 संत समागम होय तहां नित जाइए।।
संत समागम होय, तहां नित जाइए।
हीय मैं उपजे ज्ञान राम गुण गाइए।।
ऐसी सभा जल जाए कथा नहीं राम की।
बिन नोशे की बारात, कहो किस काम की।।
संतों सेती प्रीत पले तो पा लिए।
राम भजन में देह गले तो गालिये।।
यह मन मूढ़ गवार मरे तो मारिए।
कंचन कामनी फंद, करें तो टारीए।।
चल रही पछवा पवन चिन्ह उड़ जाएंगे।
हर्ष कही बाजिंद, मूर्ख पछताएंगे।।
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