1549 प्रीत उसी से कीजिए जो औड निभावै।
प्रीत उसी से कीजिए जो औड़ निभावे।
बिना प्रीत का मानवा कहीं ठोड़ ना पावे।।
नाम स्नेही जब मिले तब ही सत पावे।
अगर अमर घर ले चलो भव नहीं आवे।।
जो पानी दरियाव का, दूजा ना कहावे।
हिल मिल एक हो रहे सतगुरु समझावे।।
दास कबीर विचार के, कह कह समझावे।
आपा मेटे साहब मिले, तब वह घर पावे।।
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