1539. काया रे तेरी पावनी, हंस बटेऊ लोग।।
काया रे तेरी पावनी रे बंदे, हंस बटेऊ लोग।।
जो जन्मा सो आया मरण में, सभी काल के भोग।
आपे ने भी मरना होगा औरों का के शोक।।
बालपन हंस खेल गंवाया जवानीमें भोगै भोग।
बूढ़ा हुआ कफ वायु ने घेरा, काया मेंहो गया तेरे रोग।।
भरी जवानी यूं फिरता ज्यों जंगल का रोज।
कालबली का लगे तमाचा, टोह्या ना पावे तेरा खोज।।
राम भजन में आलस माने, कुब्ध कमावे रोज।
संत देख तेरा माथा ठनके, मरा पाप के बोझ।।
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