1525. डाट्या ना डटीगा रे
डाटा ना डटेगा रे रोक न रुकेगा रे, हंसा पावना दिन चार।।
मंदिर में चोरी हुई रे , हड़ा लखीना माल।
पैड़ खोज चला नहीं रे, या टूटी नहीं दीवार।।
फूंक धवन से बंद हुई रे, ठंडे पड़े अगार।
आहरन का संशय मिटा रे , लद गए मीत कुम्हार।।
बीन बजन से रह गई रे टूटे तीर्गुण तार।
बीन बिचारी क्या करें जब गए बजावन हार।।
हाथी छूटा ठान से, कस्बे गई पुकार।
दस दरवाजे बंद पड़े यो निकल गया सरदार।।
चित्रशाला सूनी पड़ी रे, उठ गए साहूकार।
तेरी गलीचे न्यू पड़े रे, ज्यों चोपड़ पर सार।।
हाड जले ज्यों लकड़ी रे केश जले ज्यों घास।
जलती चिता ने देख के हुआ कबीर उदास।।
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