1488। कौन मिलावे मोहे पीव से।।
कौन मिलावे मोहे पीव से, पिया बिना रह्यो ए ना जाए हेली।।
मैं हिरनी पिया पारधी री, मारे शब्द के बाण।
जिसके लागे सौतन जाने, दूजे ने के जान।।
दर्श दीवानी मैं पीव की रे, रटती मैं पिया हे पिया।
पिया मिले तो लखूंगी हे, तज दूंगी सहज जिया।।
पिया की मारी हुई रे बैरागन, लोग कहे पिंड रो।
सो सो लांघन मैं किया रे पिया मिलन के योग।।
कहे कबीर सुनो हे घोघड़ तन मन धन बिसराय।
थारी प्रीत के कारण फिर मिलेंगे आए।।
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