*1542. हो हंसा भाई देश पूर्व ले जाना।।674।।
हो हंसा भाई देश पूर्वले जाना।।
विकट बाट है रहा रपटीली कैसे करूं पयाना।
बिना भेदी भटक के मरियो, खोजी खोज पयाना।।
वहां की बातें अजब निराली अटल अवीचल अस्थाना।
निराकार निर्लंब विराजे रंग रूप की खाना।।
चंद्र चांदनी चौक सजा है फूल खिले बहू नाना।
रिमझिम रिमझिम मेघा बरसे मौसम अजब सहाना।।
मानिक मोती लाल घनेरे, हीरो की वहां खाना।
जो माल कोई गिनती नहीं अपरंपार खजाना।।
नूर नगरिया कोस अठारह ता का बांध निशाना।
अखंड आवाजा मोहन बाजा वहां का पुरुष दीवाना।।
काहे ताराचंद समझ कंवर अमर यह देश बेगाना।
ना कहीं जाना ना कहीं आना, आपे बीच समाना
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