*1494. चल गुरुओं के देश हे हेली।।654।।

                                654
चाल गुरुओं के देश हे हेली, सांस ये वृथ्या जा।।

पूर्व दिशा से उठी बदरिया हे हेली पश्चिम बरसी जाए।
धरती से झड़ लग रही हे, अंबर मलमल न्हाय।।

नदी किनारे रूख खड़ा मारी हेली डगमग डगमग होय।
पात झड़ें तो यूं कहे  हे, दूर पड़ेंगे जाए।।

सौदा धरा दुकान में हे हेली, बिन गाहक मत खोल।
अभी कोई ज्ञानी परख ले हे, मोल चौगुना री दे।।

हिरणा तैं हिरण कह म्हारी हेली, दूर चरन ना जा।
आवे पारधी मारदे हे, घर-घर गोश्त बिकाय।।

नाथ गुलाब तने कहे म्हारी हेली, संग हमारे होय।
ले चलो उस देश में हे, फिर आवन ना होए।।


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