*1458. बरह्म है सबमें एक समान।।638।।

आज मेरे गुरु ने बतलाया, मुझ को ये ही ज्ञान।
            बरह्म है सब में एक समान।।
बरह्म एक अद्वैत रूप है, नही भेद स्थान।।

विद्या विनय युक्त ब्राह्मण में, वो हस्ती और पशु पक्षिन में।
वही आत्मा है स्वास्न में, वही रम रहा है हरिजन में।
             ये सब जग जगदीश रूप है, करो इसी का ध्यान।।

ना वो जन्मे ना वो मरता, ना वो जलता ना वो गलता।
ना वह घटता ना वह बढ़ता, सदा एक ही रूप में रहता।
            अविनाशी निर्गुण निर्लेपी व्यापक उसको जान।।

मनसे तो वह लखा न जावे वाणी से कहा ने जावे।
सतगुरु अब कैसे समझावे नीति नीति वेद बुलावे।
           खुद ही खुद को तुम पहचानो करो अमीरस पान।।

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