*1490. दिल महरम की बात।।653।।

                                  653
दिल महरम की बात, हेली किसने कहूंगी।।
चंदन का तेरा रथ बनाया हे, करके न बड़ी हे खुभात।।
दिल का वो प्यारा साजन, ब्याह के लाया।
    बड़ी सज के न चढ़ी थी बरात।।
बलते दिवे के वो तो झोली भी मार गया हे।
     बैरी दिन की कर गया रात।।
मैं तो रथ में साजन, पैदल डिगर गया हे।
       चलते ना बुझी मेरी बात।।
कहती कमाली कबीरा थारी बाली।
         रहते मसलते हाथ।।

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