*1456. कोई समझे चतुर सुजान समझ गुरुदेव की।।638।।

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कोई समझे चतुर सुजान, समझ गुरुदेव की।।

पग बिन चले नैन बिन देखे, सुनता है बिन कान।
बिन हाथों के लेता देता, बोले से बिना जुबान।।

बिना नासिका लेत सुगंधी, बिन मुख अमृत पान।
बिन बुद्धि के निर्णय करता, मन बिना धरता ध्यान।।

है सब भांति अलौकिक करनी, कहते वेद पुराण।
नेति नेति कह है वेद पुकारे, ऐसा है आत्मज्ञान।।

ज्ञान तीर कोमल को बिंधे, बिंधते नहीं पाषाण।
लाखों बार गगन में छोड़ो, होता नहीं रे निशान।।

जागृत स्वप्न सुषुप्ति तज के, तुरिया में स्थान।
गम से दूर आगम से आगे, ऋषि मुनि धरते ध्यान।।

बाहर विषयों से सुरती हटा के, अपने को पहचान
आत्मानंद आनंद तू ही है, तत्व मसी पहचान।।

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