*1454. मिलता ना आत्मज्ञान।।637।।
637
मिलता ना आत्मज्ञान, गुरु के बिना।बस्ती बसों चाहे वन को जाओ।
झोली फेरो चाहे भंगवा रंगाओ,
मरता ना मन मान।।
लटा बढ़ाओ चाहे मूंड मुंडाओ,
जपतप करो चाहे धूनी रमाओ।
होता नही है कल्याण।।
गीता पढ़ो चाहे तबला बजाओ,
पढ़ पढ़ पोथी पंडित कहाओ।
मिलता नहीं निज नाम।।
कांसी जाओ चाहे मथुरा जाओ,
तीर्थ जाओ चाहे मल मल नहाओ।
धुलता ना मन का मैल।।
मंदिर जाओ चाहे ठाकुर जाओ,
मस्जिद में जाओ चाहे शीश झुकाओ।
होता ना परकट भान।।
मोन करो चाहे वचन सुनाओ,
वर्त करो चाहे घर घर खाओ।
भटको चारों धाम।।
गुरु ताराचंद की शरण में आओ,
दास मदन अगम गुण गाओ।
मिलता ना राधास्वामी धाम।।
Comments
Post a Comment